जगन्नाथ मंदिर से जुड़े तथ्य जो कर देंगे आपको हैरान - a2zfact | all facts

जगन्नाथ मंदिर से जुड़े तथ्य जो कर देंगे आपको हैरान


जगन्नाथ पुरी को सबसे प्रभावशाली धामों में से एक माना जाता है | यह भगवान कृष्ण के विशेष मंदिरों में से एक और सबसे महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है | इस मंदिर को जगन्नाथ मंदिर कहने का मुख्य कारण स्वयं इस मंदिर के नाम जगन्नाथ में छुपा हुआ है | जगन्नाथ शब्द का मतलब होता है संपूर्ण जगत का मालिक और इसी कारणवश भगवान कृष्ण को जगन्नाथ स्वामी के नाम से जाना जाता है | ऐसा कहा जाता है कि जहाँ जगन्नाथ भगवान का वास होता है उस स्थान को उनके शहर अर्थात पुरी के नाम से जाना जाता है इसलिए इस धाम को जगन्नाथ पुरी कहकर बुलाया जाता है |

इस धाम को हमारे समाज के चार महत्वपूर्ण धामों में से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है | इसके अतिरिक्त यह धाम वैषणव समाज के लोगों के प्रमुख धाम के रूप में भी जाना जाता है | इस धाम से जुड़े कई ऐसे चमत्कारिक तथ्य हैं जिन्हें सुनकर आप भी हैरान रह जायेंगे इसीलिए आज हम आपको जगन्नाथ धाम से जुड़े इन्हीं चमत्कारिक रहस्यों के बारे बताएँगे |

जगन्नाथ धाम के गुम्बद के ऊपर लाल रंग का झंडा फहराया जाता है | स्वाभाविक तथ्यों के अनुसार जब हवा चलती है तब झंडे का कपडा उसी दिशा में उड़ता है लेकिन पुरी की ध्वज पताका हवा की विपरीत दिशा में बहती है जो कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक चौंकाने वाली बात है | इसी कारणवश उस झंडे को सीधा करने के लिए प्रतिदिन शाम को एक व्यक्ति को गुम्बद के ऊपर चढ़ना पड़ता है |

दुनिया में स्थित किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु, इंसान, पशु इत्यादि की छाया अवश्य बनती है परन्तु दुनिया के सबसे बड़े इस मंदिर जिसकी ऊंचाई 200 फुट से भी अधिक है एवं करीब 4 लाख स्क्वैयर फ़ीट से भी अधिक के क्षेत्र में बसा हुआ है की छाया नहीं बनती | सातवीं सदी में बने इस मंदिर की रचना कुछ इस तरह से की गयी थी कि इस विशाल मंदिर की कोई छाया ही नहीं बनती |

इस मंदिर के ऊपर रखे हुए ध्वज के साथ एक सुदर्शन चक्र जिसे नीलचक्र के नाम से भी जाना जाता है भी स्थित है जिसे आप सम्पूर्ण पुरी में कहीं से भी देख सकते हैं | यह पवित्र चक्र आठ प्रकार की धातुओं से मिलकर बनाया गया है जिसे बहुत ही पवित्र दृष्टि से देखा जाता है |

समुद्री तटों का अध्ययन करके यह देखा गया है कि सामान्यतः वहाँ पर हवा का बहाव समुद्र से ज़मीन की ओर होता है परंतु जगन्नाथ पुरी में इस प्राकृतिक नियम का एकदम विपरीत होता है | पुरी में हवा का बहाव ज़मीन से समुद्र की ओर होता है जो कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक खोज का विषय है |

आमतौर पर यह देखा गया है कि किसी भी मंदिर के ऊपर पक्षियों का बहुत ज्यादा जमावड़ा होता है लेकिन इसके विपरीत इस मंदिर की छत पर किसी भी प्रकार के पक्षी का आवागमन तक नहीं होता | इसके अतिरिक्त इस मंदिर के आसपास से कोई विमान भी नहीं गुजरता |

जगन्नाथ पुरी में प्रसाद बनाने के लिए कुल 800 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं | ऐसा कहा जाता है कि प्रसाद भले ही हज़ार लोगों के लिए बनाया गया हो लेकिन इससे करीब 20 लाख से भी ज्यादा लोगों का पेट भरा जा सकता है | मंदिर में पूरे साल भर के खाने की सामग्री एक साथ ही जमा कर ली जाती है | इसके अतिरिक्त इस मंदिर में खाना बनाने के लिए एक विशेष पद्धति जिसमे सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर नीचे लकड़ी से आग जला दी जाती है का उपयोग किया जाता है | हैरानी की बात यह है कि सबसे पहले ऊपर वाले बर्तन का खाना तैयार होता है उसके बाद उसके ठीक नीचे वाले बर्तन का और इसी तरह अंत में आखिरी बर्तन का खाना तैयार होता है | इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि मंदिर में बनाये जाने वाले प्रसाद की थोड़ी से भी मात्रा बेकार नहीं जाती |

मंदिर के ठीक पास एक शवदाह गृह है जहाँ पर मुर्दों को जलाया जाया है | जब भी आप मंदिर के अंदर पहला कदम रखेंगे आपको उस शवदाह गृह से आने वाली किसी भी तरह की गंध का एहसास नहीं होगा परन्तु जैसे ही आप मंदिर के बाहर पहला कदम रखेंगे आपको शवों के जलने की तीव्र गंध महसूस होगी | इसी प्रकार मंदिर के बाहर आपको समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देगी लेकिन मंदिर में प्रवेश करते ही किसी भी प्रकार की समुद्र की आवाज आना बंद हो जाती है जो कि किसी चमत्कार से कम नहीं है |

पुरी में भगवान कृष्ण, बलराम ओर सुभद्रा की तीनों मूर्तियों को हर 12 साल में दुबारा निर्मित किया जाता है परन्तु उनका आकर एवं रूप कभी बदला नहीं जाता | इन मूर्तियों को भी लोगों के दर्शन के लिए बनाया जाता है परन्तु उनकी कभी पूजा नहीं होती |

ऐसा कहा जाता है कि राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त थे और इसी कारणवश उनकी 'रानी गुंडिचा' को भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है | भारतीय वर्ष के आषाढ़ महीने की शुरुआत में भगवान जगन्नाथ अपने 'नन्दीघोष' नामक रथ में, बलराम जी अपने 'रक्षतलध्वज' में और देवी सुभद्रा 'दर्पदलन' नाम के रथ में अपनी मौसी गुंडिचा से मिलने परुषोत्तम नामक स्थान पर जाते हैं और इस रथ यात्रा में सम्पूर्ण भारत से ही नहीं अपितु विदेश से भी कई लोग आते हैं | आठ दिन अपनी मौसी के साथ बिताने पर जगन्नाथ स्वामी वापस अपने क्षेत्र में आषाढ़ शुक्ल की दशमी को लौट आते हैं | उनके रथ की गजपति के द्वारा सोने की झाड़ू से जिसे 'छेरा पैरनन' भी कहा जाता है सेवा की जाती है |

ऐसा कहा जाता है कि समुद्र की तीव्र लहरों के कारण यह मंदिर तीन बार टूटा था | इसका इलाज़ करते हुए जगन्नाथ स्वामी ने महाबली हनुमान को समुद्र की इन लहरों से मंदिर को बचाने का कार्य सौंपा था लेकिन जगन्नाथ स्वामी के परमभक्त हनुमान जी अपने स्वामी के दर्शन करने से स्वयं को नहीं रोक पाते और जैसे ही वे दर्शन करने पुरी आते तो समुद्र मंदिर को नुकसान पहुँचा देता | इससे परेशान होकर प्रभु जगन्नाथ ने हनुमान जी को सोने की बेड़ियों से जकड़कर समुद्र तट के पास रहने का आदेश दिया | वह बेड़ी हनुमान मंदिर आज दर्शनार्थियों के लिए अति पावन स्थल माना जाता है |