देश के कोने-कोने में
मकर संक्रांति का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है | देश के कई हिस्सों में इस
त्यौहार को कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है | पोंगल, लोहड़ी जैसे कई ऐसे ही त्यौहार
हैं जिन्हें लोग अपने रीति-रिवाजों एवं अपनी पारम्परिक मान्यताओं के अनुसार मानते हैं
| इसी प्रकार 'घुघुतिया' नाम का पर्व भी उत्तराखंड के कुमाऊं जिले में बड़े ही हर्षोल्लास
के साथ मनाया जाता है |
यह त्यौहार विशेषतः
बच्चों और कौओं के लिए बना है | इस त्यौहार के दिन सभी बच्चे कौवों को बुलाकर कई तरह
के पकवान खिलाते हैं और कहते हैं " काले कौवा काले घुघुति माला खा ले" लेकिन
क्या आपको पता है कि इस त्यौहार में बच्चे कौवों को खाना खिलाकर यह क्यों बोलते हैं
एवं इस त्यौहार को मनाने के पीछे की असली वजह क्या है ?
बहुत समय पहले कुमाऊं
जिले में चन्द्रवंशीय राजा कल्याण चंद का शासन चलता था | उनके राज्य में सभी सुखी थे
परन्तु राजा को एक ही बात का कष्ट था कि उनकी कोई संतान नहीं थी | इसी कारण से वे अत्यंत
दुखी रहते थे एवं इस बात से उनका मंत्री बहुत खुश होता था क्योंकि उसे पता था कि निःसंतान
राजा के मरने के बाद यह सारा राज्य मेरे हाथों में आ जायेगा |
एक दिन राजा अपनी पत्नी
के साथ भगवान बाघनाथ के दर्शन करने उनके मंदिर गए | सच्ची प्रार्थना की कृपा से उनके
घर में एक पुत्ररत्न की प्राप्त हुई जिसका नाम राजा ने निर्भयचंद रखा | राजा की पत्नी
हमेशा अपने पुत्र के गले में एक मोती का माला बाँधकर रखती थी और इसी कारण वे अपने पुत्र
को प्रेम से 'घुघुति' भी कहकर बुलाती थीं | इस मोती की माला से घुघुति को विशेष लगाव
हो गया था इसलिए यदि उनका पुत्र किसी भी वस्तु के लिए हठ करता तो वे उससे कहते कि ज़िद
मत कर वरना तेरी ये माला कौवे को दे दूँगी |
जब भी वह किसी वस्तु
के लिए ज़िद करता तो उसकी माँ कहती "काले कौवा काले घुघुति माला खा ले" और
यह सुनकर कुछ कौवे आ भी जाते जिससे घुघुति अपना हठ छोड़ देता किन्तु जब कभी वे कौवे
अत्यंत पास आ जाते तब घुघुति की माँ उन कौवों को कुछ खाने को अवश्य दे देती और इसी
कारणवश उन कौवों से घुघुति की अच्छी मित्रता हो गयी |
लेकिन उस बालक को देखकर
उस मंत्री की यह उम्मीद मिट्टी में मिल गयी कि उसे राजपाठ मिलेगा इसलिए वह उस बच्चे
से बैर की भावना रखने लगा | एक दिन मौका पाकर वह उस बच्चे को चुराकर अपने कुछ साथियों
के साथ जंगल की ओर भागने लगा परन्तु थोड़ी दूर ही जाने पर एक कौवे ने उन्हें देख लिया
ओर जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा | यह शोर सुनकर घुघुति उठकर रोने लगा एवं अपनी मोतियों
की माला को निकालकर लहराने लगा |
उस कौवे ने वह माला
घुघुति से छीन ली | उस कौवे की आवाज सुनकर बहुत सारे उसके साथी कौवे वहाँ इकठ्ठा हो
गए एवं मंत्री और उसके साथियों पर अपनी नुकीली चोंचों से हमला कर दिया | हमले से घायल
होकर मंत्री और उसके साथी वहाँ से भाग गए | अब अकेला घुघुति उस जंगल में एक पेड़ के
नीचे बैठ गया जिससे सारे कौवे भी उसी पेड़ के ऊपर बैठ गए | जिस कौवे के पास वह मोतियों
का हार था वह सीधे राजमहल की ओर उड़ने लगा |
इधर राजमहल में सभी
घुघुति की अनुपस्थिति से परेशान थे | तभी वह कौवा घुघुति की माला लिए वहाँ आया और उस
माला को घुघुति की माँ के सामने फ़ेंक दिया | यह देखकर सभी को अंदाजा हो गया कि कौवा
घुघुति के बारे में कुछ तो जानता है | इसलिए वे सभी कौवे के पीछे चल दिए और थोड़ी दूर
जाने पर ही एक पेड़ के नीचे उन्हें अपना पुत्र सोता हुआ दिखाई दिया |
उसे वे अपने साथ ले
आये एवं उस दुष्ट मंत्री और उसके साथियों को कठोर दंड दिया | तब उसकी माँ ने कहा कि
यदि ये माला और ये कौवे नहीं होते हमें हमारा पुत्र नहीं मिल पता एवं इसी कारण घुघुति
की माँ ने अनेक प्रकार के पकवान बनाकर उन कौवों को घुघुति के हठ से खिलवाया तब से ही
घुघुतिया त्यौहार कुमाऊं में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है | इस दिन मीठे आटे
को जिसे घुघुत भी कहा जाता है माला बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाया जाता है |