इस गांव में दीवाली ना मनाने का कारण सुनकर हैरान रह जायेंगे आप - a2zfact | all facts

इस गांव में दीवाली ना मनाने का कारण सुनकर हैरान रह जायेंगे आप


भारत में आये दिन कोई न कोई त्यौहार एवं उत्सव तो होते ही रहते हैं और दीवाली को तो उसमें सबसे ऊपर का खास स्थान दिया जाता है | जब पूरा देश दीवाली के दिन से लेकर रात तक पूजा करने, पटाखे फोड़ने एवं मिठाई बाँटने में व्यस्त रहता है तब उसी समय हमारे देश के एक गांव के लोग ऐसे भी हैं जो दीवाली के दिन को भी एक आम दिन की तरह मानते हैं और अपनी स्वाभाविक दिनचर्या का पालन करते हैं |

आपको ऐसा सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा और आप उस गांव का नाम भी जानना चाहते होंगे तो आइये हम उस गांव के बारे में आपको बताते हैं | हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर तहसील के एक छोटे से गांव 'अटियाला दाई' के 'अंगारिया समुदाय' के लोगों की कहानी कुछ ऐसी ही है | सुलह विधानसभा क्षेत्र से लगे सिहोटु पंचायत के अंतर्गत आने वाले इस गांव की कहानी सुनकर आपको जरूर अजीब लगा होगा लेकिन इस गांव की सच्चाई यही है |

इस गांव में कुल 50 से भी अधिक परिवार रहते हैं लेकिन सभी इस नियम का पालन पूरे मन से करते हैं | वहाँ के बड़े बुज़ुर्गों का कहना है कि इस नियम के पालन के पीछे गांव के एक भूतपूर्व बुज़ुर्ग के बलिदान की कहानी है | उनका कहना है कई साल पहले जब कुष्ठ रोग का इलाज़ नहीं हुआ करता था तब बहुत से लोग इस बीमारी की वजह से हमारे गांव में मारे जाते थे | इसी गांव के एक बुज़ुर्ग को भी यह रोग हुआ तब उन्होंने एक बड़ा बलिदान करने का प्रण लिया | उन्होंने कहा कि इस रोग को इस गांव से ख़त्म करने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा है |

उन्होंने एक गड्ढा खोदा और एक जलता दिया हाथ में लेकर उस गड्ढे के अंदर बैठ गए और बाकी लोगों से कहा कि अब सारी मिटटी मेरे ऊपर डाल दो | जब उन्हें ज़िंदा दफनाया जा रहा था तब उन्होंने लोगों से कहा कि मै यह काम अपने गांव के लोगों की भलाई के लिए कर रहा हूँ साथ ही उन्होंने अपने लोगों को भविष्य में कभी भी दीवाली का त्यौहार मनाने से मना कर दिया और एक चेतावनी भी दी कि यदि भविष्य में कभी भी गांव के लोगों ने दीवाली मनाई तब एक बार फिर यह रोग गांव वालों को कष्ट देना आरम्भ कर देगा |

और तभी से यह परंपरा चली आ रही है | इतिहास में इन बातों का कही भी उल्लेख नहीं मिलता और गांव के बुज़ुर्गों खुद भी नहीं जानते कि यह परम्परा कितने सालों से चली आ रही है लेकिन फिर भी यहाँ के लोग इस वचन का मान आज भी रखे हुए हैं | यहाँ तक कि जो लोग इस गांव से बहार बसने गए उन्होंने भी यह परंपरा कभी नहीं छोड़ी |