जुए को शुरुआत
से ही ख़राब
माना गया है
| इसका मुख्य कारण यह
है कि इसमें
व्यक्ति बिना मेहनत
किये फल पाने
की कामना करता
है | इसी वजह
से जुए को
एक खेल नहीं
अपितु एक बुराई
माना गया है
| द्वापरकाल में पांडव
भी इसी जुए
की वजह से
अपनी सारी धन
सम्पदा यहाँ तक
की अपनी धर्मपत्नी
द्रौपदी को भी
हार गए थे
और बाद में
इसी जुए की
वजह से उन्हें
13 वर्ष का वनवास
भी काटना पड़ा
था | यहाँ तक
कि इस जुए
ने हमारे पूज्यनीय
भगवान शिव को
भी परेशान किया
है |
एक बार भगवान
शिव माता पार्वती
के साथ जुआ
खेलने बैठे और
धीरे-धीरे करके
सबकुछ हारने लगे
| अंततः वह सबकुछ
हार गए और
हारने के बाद
पत्तों से अपने
तन को ढंकते
हुए गंगा नदी
के किनारे जा
पहुँचे | उनकी यह
दशा देखकर माता
पार्वती व्यथित हो गयीं
और उन्होंने यह
बात अपने पुत्र
श्रीगणेश जी को
कही | सब हाल
जानकार भगवान शिव से
मिलने खुद गणेश
जी पहुँचे और
शिव जी के
साथ द्यूत अर्थात
जुआ खेलने लगे
| अंत में भगवान
शिव उनसे भी
हार गए |
यह बताने के लिए
गणेश जी अपनी
माता के पास
पहुँचे परन्तु यह सुनकर
वह और भी
व्यथित हो गयीं
| यह जानकार गणेश
जी ने अपने
वाहन मूषकराज को
गंगा तट पर
भेजा | भगवान शिव के
अनन्य भक्त रावण
ने यह देखकर
बिल्ली का रूप
धारण किया और
मूषकराज को डराकर
वापस भेज दिया
|
इतना सब देखकर
शंकर जी ने
गणेश जी से
कहा कि मै
यहाँ से कैलाश
तभी वापस आऊँगा
जब पार्वती जी
फिर से मेरे
साथ जुआ खेलेंगी
| इधर भगवान शिव
की माया से
विष्णु जी ने
पांसे का रूप
धारण किया और
उधर माता पार्वती
जुआ खेलने के
लिए तैयार हो
गयीं लेकिन उन्होंने
शिव जी से
पूछा कि आपके
पास दाँव पर
लगाने के लिए
कौन सी वस्तु
बची है | यह
सुनकर महर्षि नारद
ने अपनी वीणा
शिव जी को
दे दी | भगवान
विष्णु के पांसे
बने रहने के
कारण शिव जी
हर चाल में
जीतने लगे | यह
बात गणेश जी
ने माता पार्वती
को बता दी
| सच्चाई जानकार माता पार्वती
बहुत क्रोधित हुईं
| उन्हें रावण ने
समझाने की बहुत
कोशिश की लेकिन
उनका क्रोध शांत
नहीं हुआ |
उन्होंने सबसे पहले
शिव जी को
श्राप दिया कि
उनके मस्तक से
गंगा माँ की
धारा का बोझ
कभी नहीं हटेगा
और विष्णु भगवान
को श्राप दिया
की तुम और
रावण एक दूसरे
के शत्रु बनोगे
और रावण का
विनाश विष्णु जी
ही द्वारा होगा
| साथ ही महर्षि
नारद को भी
यह श्राप दिया
कि तुम कभी
भी कहीं भी
स्थिर नहीं रहोगे
और तीनो लोको
में भ्रमण करते
रहोगे |